Wednesday, July 23, 2014

तानीजुब्बर झील, हिमाचल प्रदेश ( इतिहास और मिथक )




तानीजुब्बर झील हिमाचल प्रदेश की प्राकृतिक झीलों में से एक झील है।  जो पहाड़ों की राजधानी शिमला से पुराने हिन्दोस्तान तिब्बत मार्ग पर लगभग 76 किलोमीटर की दुरी पर स्थित ह। यह झील देवदार के घने जंगलों से घिरी  हुई  है। जिससे झील की सुंदरता में चार चाँद लग जाते हैं, इसके साथ साथ सेब के बगीचो तथा बर्फ से ढके हिमालय पर्वत को भी देखा जा सकता है। यह झील समुन्दर तल से लगभग 8000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्तिथ है। यह झील सर्दियों में पूरी तरह से बर्फ से ढक जाती है। 




झील के किनारे एक प्राचीन नाग देवता का मंदिर भी है, जोकि स्थनीय देवताओं  में सबसे बड़े देवता माने  जाते हैं।  स्थानीय डोम देवता, पमलाही और चतरमुख देवता, मैलन,  नाग देवता, खाचली को अपना गुरु मानते हैं । नाग देवता को वर्षा का देवता भी कहा  जाता है। जब कभी भी वर्षा न हो तो स्थानीय लोग एकत्र होकर नाग देवता की शरण में जाते है। जब कभी भी स्थानीय लोगो पर कोई विपति आती है तो भी लोग नाग देवता की शरण में जाते हैं और नाग देवता गूर के माध्यम से लोगों की विपति को दूर करते हैं । इस स्थान पर हर वर्ष मई महीने के आखरी दिंनो में दो दिनों के मेले का आयोजन होता है, जिसमे स्थानीय देवता चतरमुख, मैलन शरीक होते हैं। इस मंदिर में पशु बलि का भी प्रचलन है। जिसमें शांद महोत्सव प्रमुख है। 



इस मंदिर और झील के बारे में एक रोचक कहानी भी बताई जाती है कि प्राचीन समय में जब स्थानीय लोग अपनी गायों को इस स्थान पर चराने ले जाते थे तो वे गाये शाम को दूध नहीं देती थी। जब स्थानीय लोगो ने इसकी खोजबीन की तो पाया कि चरने के एक स्थान पर गाय के थन पर साँप लिपटे हुए थे। स्थानीय लोग यह नज़ारा देख कर हैरान हो गए, कुछ ही देर में सांप चले गए और गाय फिर से चरने लग गई। वहाँ  पर लोगों ने झाड़ईयोँ में नाग देवता की आकृति की मूर्तियों को देखा। इसके पश्चात लोगो ने वहां एक मंदिर का निर्माण किया और उन मूर्तियों की स्थापना मंदिर में कर दी। जब कभी भी स्थानीय लोगों के घर में गाय बछड़े को जन्म देती है तो उस गाय के दूध और घी का प्रयोग तब तक नहीं करते जब तक की नाग देवता के मंदिर में न दे। 
इसी मंदिर के पास एक पानी का एक छोटा सा स्त्रोत भी है, जोकि नाग देवता के प्रत्यक्ष से आज तक कभी नहीं सूखा  है और वहां पर एक छोटी सी झील बनी। इस झील के पानी का प्रयोग मंदिर में पूजा के लिए किया जाता है। 



एक रोचक तथय  1990  के दशक में भी सामने आया, जब हिमाचल टूरिज्म विभाग ने इस झील में मछलियाँ डाल दी थी। इसके पश्चात स्थानीय लोगों को कई तरह की विपदियों तथा द्स्वप्नों का सामना करना पड़ा। लोग नाग देवता, खाचली की शरण में गए, नाग देवता ने गूर के माध्यम से बातया कि जिस झील के पानी का प्रयोग उनकी पूजा के लिए किया जा रहा है वह पानी मछलियों द्वारा गन्दा किया हुआ है। इसके बाद लोगों ने झील के एक किनारे को तोड़ कर इसके सारे पानी को निकाल दिया। झील को पूरी तरह से सूखने के उपरान्त, इस के किनारों को बंद कर दिया गया। कुछ समय के पश्चात नाग देवता, खाचली के प्रत्यक्ष स्वरुप से यह झील फिर से भर गयी।   


Copy Right: Dr Lalit Mohan

No comments: